शनिवार, 9 जुलाई 2011

कांग्रेस की रणनीतिक खामी का नतीजा है तेलंगाना

वर्षो तक सत्ता से बेदखल रहने के  बाद जब कांग्रेस  2004 में सत्ता में वापस आई तो उसके  पास कुछ कर  दिखाने के  ढेरों मौके  थे । उसने इन मौकों को  जाया भी नहीं होने दिया और लोक  हित में कुछ अप्रत्याशित फैसले लिए। विपक्ष की तमाम आलोचनओं के बावजूद सूचना के  अधिकार कानून और राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी  योजना को  लागू करने तथा परमाणु संधि पर सहयोगी वामदलों के  समर्थन वापस लेने के  बावजूद  कांग्रेस ने जो फैसले लिए उसका  सकारात्मक  परिणाम उसे 2009 में  लोकसभा चुनावों में देखने को  मिला और कांग्रेस  दुबारा केंद्र  में सत्तारुढ़ हुई। लेकिन  पहली पारी में अपने साहसी फैसलों की  बदौलत सत्ता में वापसी करने के कारण कांग्रेस  ने कुछ मुगालते पाल लिए जिसका नतीजा अब सामने आ रहा है ।

 
भ्रष्टाचार और महंगाई  के मुद्दे पर चारों तरफ से घिरी यूपीए सरकार की  दूसरी पारी अब अपने ही द्वारा बनाए गए चक्रव्यूह में फंसती नजर आ रही है। और इस काम को अंजाम देने वाली कोई  और पार्टी नहीं बल्कि उसके  अपने ही नेता हैं जो तेलंगाना के  मुद्दे पर लगातार अपने शीर्ष नेतृत्व की  खुलेआम अवहेलना कर रहे हैं और तेलंगाना को अलग राज्य बनाने की  मांग को  लेकर इस्तीफा देते जा रहे हैं। फिलहाल तेलंगाना क्षेत्र में आने वाले सभी कांग्रेसी  सांसदों और विधायकों ने इस्तीफे दे दिए हैं। कांग्रेस के  साथ-साथ तेलगूदेशम पार्टी के विधायकों  और सांसदों ने भी इस्तीफा दे दिया है और यदि इन सभी के  इस्तीफे स्वीकार कर लिए जाते हैं तो राज्य में सरकार अल्पमत में आ  जाएगी जिसके  बाद राष्ट्रपति शासन लगना तय है।


आंध्र प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव,लोकसभा चुनाव के  साथ ही हुए थे। केंद्र और राज्य में एक  साथ चुनावी समर में उतरी कांग्रेस  ने अपनी चुनावी रणनीति के तहत तेलंगाना के  मुद्दे पर नरम रुख अख्तियार किया था। इसके  बाद केंद्रीय  गृह मंत्री पी . चिदंबरम ने तेलंगाना राष्ट्र समिति के मुखिया के. चंद्रशेखर राव के  अनशन को  तुडवाने के  लिहाज से अलग तेलंगाना राज्य के  गठन के  लिए सक्रिय  प्रयास करने का एलान किया था। इसके  लिए केंद्र  ने श्रीकृष्ण समिति का  गठन भी कर दिया। इस घोषणा के  दो वर्ष बीत जाने के बाद केंद्र को  ये लगने लगा था कि  उसने तेलंगाना मसले को  करीब -करीब  निबटा दिया है तो तेलंगाना  रुपी  इस जिन्न ने एक बार फिर से अपना सर उठा लिया है। इस जिन्न को  वापस बोतल में बंद करने की कवायद में लगी कांग्रेस  जितना ही इस मुद्दे को सुलझाना चाहती है वो उतनी ही उलझती जा रही है। हालांकि तेलंगाना के समर्थकों का  मानना है कि  तेलंगाना की  स्वायत्तता के लिए कांग्रेस कोई भी कदम  नहीं उठाना चाहती है। कांग्रेसी तौर-तरीको पर एक  नजर डालें तो उनकी  इस बात में एक  हद तक  सच्चाई भी नजर आती है क्योंकि तेलंगाना मसले पर बनाई गई श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट आ चुकी  है जिसमें उसने इस समस्या से निजात पाने के  लिए छह प्रभावशाली उपायों का भी जिक्र  किया  है। लेकिन सरकार के  पास शायद इस समिति की सिफारिशों को सुनने और उसपर अमल करने का  समय नहीं है। हालांकि  श्रीकृष्ण समिति द्वारा की  गई सिफारिशों से आम जनता भी खुश नहीं है और उसकी  एक मात्र मांग अलग तेलंगाना राज्य की  ही है।
आंध्रप्रदेश से तेलंगाना को अलग करने के  लिए समय -समय पर आंदोलन होते रहे हैं परंतु हालिया आंदोलन अन्य आंदोलनों से अलग है। इस आंदोलन की  सबसे बड़ी खासियत ये है कि  इस आंदोलन में तेलंगाना राष्ट्र समिति के साथ-साथ सत्तारुढ़ कांग्रेस के  विधायको  और सांसदों ने भी इस्तीफे दे दिए हैं जिनमे राज्य के  मंत्री भी शामिल हैं। इसी के  आधार पर केंद्रीय  मंत्री जयराम रमेश पर भी इस्तीफा देने का दबाव बनाया जा रहा है क्योंकि वो भी तेलंगाना से ही सांसद चुने गए हैं। आंदोलनकारियों की  48 घंटे की  राज्यव्यापी बंदी ने राज्य के  सामने परेशानियों का  अंबार खड़ा कर  दिया है। वहीं दूसरी ओर तेलंगाना मसले का  विरोध करने वाला धड़ा भी सरकार पर दबाव बनाने की कवायद में जुटा हुआ है।
 देश में सियासी संकट उत्पन्न करने वाला तेलंगाना का  मुद्दा कोई नया नहीं बल्कि दशकों पुराना है। 10 जिलों के 1 .15  लाख वर्ग कि.मी , में रहने वाली 3 .53 करोड़ जनसंख्या (सन 2011 की जनगणना के  अनुसार आंध्रप्रदेश की  जनसंख्या का  41 .6 फीसदी) यदि अपने हक  और हुकूक की  लड़ाई के  लिए दशकों  से आंदोलनरत है तो इसका  समाधान तो होना ही चाहिए। आखिर कब तक  कोई अपनी उपेक्षा बर्दाश्त कर  पाएगा ? और कहीं ऐसा न हो कि  यह उपेक्षा किसी  दिन सशस्त्र क्रांति का रुप धारण कर ले तो इससे निजात पाने में सरकार को नाकों  चने चबाने पड़ सकते हैं। लेकिन  इन  स्थितियों को  बारीकी से समझने के  बावजूद कांग्रेस  ने अभी तक  कोई  ऐसा कदम नहीं उठाया है जिसे सकारत्मक कहा जा सके ।










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