शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

बताओ कौन यह शोला मेरे आंगन में लाया है...

बताओ कौन यह शोला मेरे आंगन में लाया है...
किसी ने कुछ बनाया था, किसी ने कुछ बनाया है,
कहीं मंदिर की परछाई, कहीं मस्जिद का साया है,
न तब पूछा था हमसे और न अब पूछने आए,
हमेशा फैसले करके हमें यूं ही सुनाया है...

किसी ने कुछ बनाया था, किसी ने कुछ बनाया है...

हमें फुर्सत कहां रोटी की गोलाई के चक्कर से,
न जाने किसका मंदिर है, न जाने किसकी मस्जिद है,
न जाने कौन उलझाता है सीधे-सच्चे धागों को,
न जाने किसकी साजिश है, न जाने किसकी यह जिद है
अजब सा सिलसिला है यह, जाने किसने चलाया है।

किसी ने कुछ बनाया था, किसी ने कुछ बनाया है...

वो कहते हैं, तुम्हारा है, जरा तुम एक नजर डालो,
वो कहते हैं, बढ़ो, मांगो, जरूरी है, न तुम टालो,
मगर अपनी जरूरत तो है बिल्कुल ही अलग इससे,
जरा ठहरो, जरा सोचो, हमें सांचों में मत ढालो,
बताओ कौन यह शोला मेरे आंगन में लाया है।

किसी ने कुछ बनाया था, किसी ने कुछ बनाया है...

अगर हिंदू में आंधी है, अगर तूफान मुसलमां है,
तो आओ आंधी-तूफां यार बनके कुछ नया कर लें,
तो आओ इक नजर डालें अहम से कुछ सवालों पर,
कई कोने अंधेरे हैं, मशालों को दिया कर लें,
अब असली दर्द बोलेंगे जो दिलों में छुपाया है।

किसी ने कुछ बनाया था, किसी ने कुछ बनाया है...
                                                                  प्रसून जोशी की कविता जो युवाओं के लिए प्रेरणास्पद है .