बुधवार, 1 जून 2011

धूम्रपान-मादकता से मौत तक का सफर

तम्बाकू निषेध दिवस पर विशेष
 
धूम्रपान एक ऐसी बुरी लत है जिससे पूरी दुनिया प्रभावित है। आज पूरे विश्व के सामने धूम्रपान मुक्त समाज का निर्माण करना एक चुनौती की तरह मुंह बाये खड़ा है। एक भयंकर आपदा की तरह यह हमारे जीवन को तबाह करने पर तुला है। कौन नहीं जानता है कि नशे से जिन्दगी का नाश हो जाता है, फिर भी मुगालते में जीने वालों की कमी नहीं है जो यह मानते हैं कि मादक पदार्थों के सेवन से ही जीवन तनाव मुक्त होता है और आनंद की प्राप्ति होती है।

भारतीय भी इस मुगालते से अछूते नहीं हैं। उन्हें भी यह लगता है कि धूम्रपान से उनका तनाव दूर होता है और वो अपने जीवन में सुख-शान्ति महसूस करते हैं लेकिन परिस्थिति ठीक इसके विपरीत है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में प्रत्येक दिन धूम्रपान करने से 2200 लोगों की मृत्यु हो जाती है।वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा दस हजार व्यक्ति प्रतिदिन है। पूरी दुनिया में कैंसर से मरने वाले व्यक्तियों में 33 फीसदी मृत्यु केवल धूम्रपान करने वालों की होती है।

गौरतलब है कि सिगरेट के धुएं में पालिनियम210, निकल, कार्बनमोनोआक्साइड,  पाइरीमन बैजोपाइरिन ,नाइट्रोजनआइसोग्रेनाइड जैसे रासायनिक यौगिक अल्प मात्रा में और निकोटिन अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है जिसके कारण धूम्रपान करने वालों को सबसे ज्यादा खतरा कैंसर का होता है। इसके अतिरिक्त लकवा, मोतियाबिंद, नपुंसकता, बांझपन,पेट का अल्सर, एसिडिटी, दमा,ब्रोंकाइटिस,मिर्गी,सिजनोफ्रिया,ट्यूबरक्लोसिस और अल्जाइमर जैसे रोगों का भी खतरा सदैव बना रहता है।
 
ऐसी स्थिति होने के बावजूद भी लोग धूम्रपान से परहेज नहीं कर पा रहेहैं। इसका सबसे बड़ा कारण सिगरेट उत्पादन रोकने के प्रति सरकार की उदासीनता है। तमाम छोटे  बड़े विज्ञापनों से लोगों में तम्बाकू के खिलाफ जागरूकता मुहीम चलाई जा रही हैं लेकिन इन मुहिमों से लोगों की मानसिकता में कुछ खास बदलाव नहीं आ  रहा है ।
1 7वीं शताब्दी में पुर्तगालियों द्वारा भारत लाया गया यह उत्पाद भारतीय राजस्व में एक अहम भूमिका निभाता है। भारत एशिया में दूसरा और विश्व का 10वां सबसे बड़ा सिगरेट उत्पादक देश है। तंबाकू उद्योग से भारत सरकार को 7,000 करोड़ रुपये और इन उत्पादों के निर्यात से 11,000 करोड़ रुपये सालाना राजस्व के रुप में प्राप्त होते हैं। इस देश की पांच लाख हेक्टेयर से भी अधिक कृषि योग्य भूमि पर तंबाकू की खेती होती है।ऐसी स्थिति में जब सरकार राजस्व के नाम पर तंबाकू उद्योग को प्रोत्साहनदे रही है और तंबाकू ,सिगरेट के उपभोक्ता इसे तनाव मुक्त करने का साधन मान रहे हैं तो फिर धूम्रपान मुक्त समाज की कल्पना करना बेमानी लगता है। विगत दिनों तंबाकू निर्माता कंपनियों द्वारा तंबाकू उत्पादों के पैकेटों पर भयावह चित्र न छापने की जिद के आगे सरकार का झुकना इस बात को प्रमाणित करता है कि सरकार इस मुद्दे पर कितनी असंवेदनशील है। सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान वर्जित होने के कानून का भी सख्ती से लागू न हो पाना इसी सरकारी संवेदनहीनता की ओर इंगित करता है।


नशा मुक्त समाज एक आदर्श स्थिति है। ऐसी स्थिति कायम करना नितांत असंभव तो नहीं लेकिन मुश्किल जरुर है। यह स्थिति कायम करने के लिए समाज का जागरुक होना बेहद जरुरी  शर्त  है।समाज में जागरुकता फैलाकर और लोगों को इस नशे से होने वाले नुकसान के बारे में बताकर इस पर अंकुश लगाया जा सकता है । साथ ही साथ सरकारी कानूनों को और भी ज्यादा कारगर और  कठोर बनाकर धुम्रपान पर पूरी तरह से अंकुश लगाये जाने की आवश्यकता है  अन्यथा एक दिन ऐसा आयेगा जब पूरी दुनिया नशे का गुलाम बन जायेगी और उस परिस्थिति में इस  पर काबू पाना असंभव हो जाएगा।

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