प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और श्रीमती सोनिया गाँधी के अनुसार यूपीए सरकार ने तमाम बड़ी- बड़ी उपलब्धियों के सहारे अपने कार्यकाल का 2 वर्ष पूरा कर लिया है.लेकिन इनके द्वारा गिनाई गई उपलब्धियों की जमीनी हकीकत क्या है इससे शायद ही कोई अनजान होगा. हाँ औद्योगिक घरानों के लिए ये उपलब्धियां खासी मायने रखती हैं लेकिन मध्यम वर्गीय परिवार और निम्न वर्गीय परिवारों को तो इन गिनाई गई सफलताओं का सिर-पैर भी नहीं समझ में आया होगा.
मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व शानदार है और सोनिया का तो उनसे भी ज्यादा शानदार.इन दोनों की व्यक्तिगत ईमानदारी पर भी कभी संदेह नहीं किया गया है.लेकिन अपने शानदार व्यक्तित्व के आभामंडल से घिरे इन दोनों ही राजनेताओं के दिमाग से शायद यह बात निकल गई थी कि सरकार सिर्फ एक या दो नेताओं की ईमानदारी से नहीं चलती है.ये दोनों लोग तो अपने अपने व्यक्तिगत ईमानदारी के सहारे यू पी ए को बुलदियों तक पहुचाने का ख्वाब देख रहे थे लेकिन इन्हीं की सरपरस्ती में कुछ लोगों ने सरकार की जड़ों में मट्ठा डालने का काम किया .परिणाम सबकी आँखों के सामने है.हाँ ये दीगर बात है की विपक्षी पार्टियों को कांग्रेस की इस दुर्गति से कोई खास फायदा नहीं हुआ.
कांग्रेस के खास सिपहसलार सुरेश कलमाड़ी ने राष्ट्रमंडल खेल घोटाले को अंजाम दिया तो वही उन्ही की पार्टी के मुख्यमंत्री अशोक चौहान ने आदर्श घोटाला में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई.और जब कांग्रेस घोटाले कर सकती है तो डीएमके का तो फर्ज ही बनता है की वो गठबंधन धर्म का निर्वहन करे . उसने ऐसा किया भी . देश के इतिहास का सबसे बड़ा २- जी घोटाला डीएमके के ए. राजा के नाम पर दर्ज हो गया. उन्ही के साथ संबंधों के आरोप में करूणानिधि की पुत्री कनिमोझी को भी जेल की सलाखों के पीछे भिजवा दिया.
पिछले कार्यकाल की कुछ खास उपलब्धियों(मनरेगा और सूचना का अधिकार कानून आदि) की सीढ़ी चढ़ कर कांग्रेस ने दुबारा सत्ता तो वापस पाली लेकिन जनता से किये वादों को वो निभा नहीं पाई.हालाँकि राजनितिक पार्टियों के लिए तो ये एक स्वाभाविक घटना है. आखिर कितने दावों को वो याद कर पाएंगे .हर साल कहीं न कहीं चुनाव होने ही हैं और हर साल इनको जीतने के लिए दावे करने ही होते हैं.आखिर कहाँ -कहाँ और कितने -कितने दावों को ये याद कर पाएंगे.
पिछले कार्यकाल की कुछ खास उपलब्धियों(मनरेगा और सूचना का अधिकार कानून आदि) की सीढ़ी चढ़ कर कांग्रेस ने दुबारा सत्ता तो वापस पाली लेकिन जनता से किये वादों को वो निभा नहीं पाई.हालाँकि राजनितिक पार्टियों के लिए तो ये एक स्वाभाविक घटना है. आखिर कितने दावों को वो याद कर पाएंगे .हर साल कहीं न कहीं चुनाव होने ही हैं और हर साल इनको जीतने के लिए दावे करने ही होते हैं.आखिर कहाँ -कहाँ और कितने -कितने दावों को ये याद कर पाएंगे.
बहरहाल बात हो रही थी मनमोहन सिंह के आकर्षक व्यक्तित्व की. 1991 के आर्थिक सुधारों के जन्मदाता और वर्तमान भारतीय आर्थिक सुदृढ़ता के जनक मनमोहन सिंह की शख्सियत बेमिसाल है. उनका मृदुभाषी स्वाभाव किसी को भी सहज ही आकर्षित कर लेता है.लेकिन फिर वही सवाल खड़ा होता है कि क्या एक अकेली शख्सियत की बदौलत देश को चलाया जा सकता है.लेकिन ये जरुर कहा जा सकता है कि मनमोहन सिंह आज जिस कुर्सी पर बैठे हुए हैं वहां से भ्रष्टाचार पर नकेल कसी जा सकती है .......
ऐसी ही परिस्थितिओं के लिए हिंदी के मशहूर गजलकार दुष्यंत कुमार ने लिखा था कि
यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है
चलो यहाँ से चलें उम्र भर के लिए.
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