सोमवार, 16 मई 2011

बदलाव की बाट जोहती जनता ने किया तख्तापलट

पश्चिम बंगाल में लगातार 34 सालों से सत्ता पर ·काबिज वामपंथ अब सत्ता से दूर चला गया है।पश्चिम बंगाल की  जनता जो 34 सालों से एक  ही शासन के  तले जी रही थी इसने अपने भाग्य विधाता को आखिरकार बदल ही दिया ।अब सत्ता की  चाभी ममता बनर्जी के  हाथों में हैं जहां से वो अपने मनमाफिक  बंगाल का निर्माण  करने में सक्षम हैं।लेकिन  सबसे बड़ा सवाल यही पैदा होता है कि जिन मुद्दों को  आधार बनाकर ममता ने सत्ता पर कब्ज़ा किया है वो उनको  सुधारने में कितनी सक्षम हो पाती हैं।
तमिलनाडु में सत्ता परिवर्र्तन की सबसे बडी वजह डीएमके  पर भ्रष्टाचार के  आरोपों का होना माना जा रहा है।
लेकिन  ऐसा मानने वालों को  यह कतई  नहीं भूलना चाहए कि इन भ्रष्टाचारों में कांग्रेस की भी उतनी ही  बडी भूमिका   है जितनी की  डीएमके की ।2-जी स्पेक्ट्रम मामले में ए राजा की  गिरफ्तारी हो जाने और कनिमोझी पर चार्जशीट दाखिल हो जाने से डीएमके एक  भ्रष्ट पार्टी हो जाती है तो आदर्श घोटाले में अशोक  चव्वहाण और राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में सुरेश कलमाडी की  गिरफ्तारी को  भी अनदेखा नहीं किया  जा सकता है।ये दीगर बात है कि ये राजनेता जिन राज्यों से संबंधित हैं वहां पर चुनाव नहीं हुए है।लेकिन  क्या यदि आज महाराष्ट्र में मध्यावधि चुनाव हों जाए तो वहां से कांग्रेस का  तख्ता पलट हो जाएगा ।यह अपने आप में एक  बड़ा सवाल है।
बंगाल में मां,माटी और मानुस के  नाम पर और नंदीग्राम और सिंगुर मसले पर लोगों लोगों की  भावनाओं के सहारे वोट बैंक तक  पहुंचने  के साथ ही  ममता ने चुनाव तो जीत लिया है लेकिन  बंगाल के लोगों से  किये  गए  वायदे को पूरा करने के  लिए वो कौन सी नीति अपनाएंगी इसका  खुलासा वो अभी तक  नहीं कर पायी हैं।
इसके साथ साथ उनके सामने एक और बड़ी समस्या मुह बाये खड़ी है और वो ये है कि उनके साथ सत्ता के गठबंधन में कांग्रेस पार्टी है जिसके तमाम बड़े नेताओं पर बड़े बड़े भ्रस्टाचार के मामले दर्ज है. साथ ही साथ ममता जिस औद्योगीकरण का विरोध  करके सत्ता पर काबिज हुई हैं उसकी जननी कांग्रेस ही है.
1991 में कांग्रेस के द्वारा अपने गई नवउदारवादी नीतियों का खामियाजा आज पूरा देश भुगत रहा है. अर्थव्यवस्था के विकास के नाम पर सिंगुर और नंदीग्राम जैसी घटनाये कांग्रेसी  नीतियों का ही परिणाम हैं.ऐसे में ममता बनर्जी अपनी सहयोगी पार्टी की नीतियों के उलट कुछ करने में सक्षम हो पाएंगी इसमें संदेह है. कहीं ऐसा तो नहीं कि ममता बनर्जी जिन वादों  और सपनों को जनता को दिखाकर ३४ सालों से काबिज वामपंथ का तख्ता पलट करके सत्ता में आई हैं उस जनता के लिए वो सपने सपने ही रह जाएँ क्योकि  ममता बनर्जी का राजनैतिक कैरियर इतना लम्बा होने के वावजूद भी उनका कोई एक पोलिटिकल स्टैंड नहीं रहा है .और तिस पर तुर्रा यह कि उनके साथ गठबंधन में कांग्रेस है .
बहरहाल उम्मीद ही  की जा सकती है कि बंगाल की जनता के साथ इस बार कोई धोखा न हो और वो भी अपने उन अधिकारों को प्राप्त कर सके जिसके लिए उसने 34 सालों के वाम शासन को ठुकराकर ममता बनर्जी को मौका दिया है.




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